High Court Loan Relief Verdict 2025: दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में लोन रिकवरी से जुड़े एक अहम मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है, जो लाखों लोनधारकों के लिए राहत लेकर आ सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बैंक हर बार लुकआउट सर्कुलर (LOC) जारी नहीं कर सकते, खासकर तब जब व्यक्ति पर कोई आपराधिक मामला न हो। केवल आर्थिक कठिनाइयों के कारण ईएमआई न चुकाने वाले पर विदेश जाने पर रोक लगाना अनुचित और गैर-कानूनी है। इस फैसले ने उन लोगों के अधिकारों की रक्षा की है जो वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं।
मामले की पूरी कहानी क्या है?
यह मामला एक कंपनी के पूर्व निदेशक से जुड़ा था, जो 69 करोड़ रुपये के लोन का गारंटर था। जब कंपनी लोन चुकाने में असमर्थ रही, तो वह इस्तीफा देकर दूसरी नौकरी में शामिल हो गया। बैंक ने लोन डिफॉल्ट का हवाला देते हुए उस व्यक्ति के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी करने की कोशिश की, ताकि वह विदेश न जा सके। लेकिन उस पर कोई धोखाधड़ी, गबन या आपराधिक आरोप नहीं था। हाईकोर्ट ने केस की जांच में पाया कि बैंक का यह कदम गैरकानूनी और असंवैधानिक था।
लुकआउट सर्कुलर कब जारी किया जा सकता है?
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि लुकआउट सर्कुलर केवल तब जारी किया जा सकता है जब व्यक्ति गंभीर आपराधिक मामलों जैसे धोखाधड़ी या गबन में लिप्त हो। केवल लोन न चुका पाने की वजह से किसी की विदेश यात्रा पर रोक लगाना उसके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आर्थिक मुश्किलों और आपराधिक इरादों के बीच फर्क करना जरूरी है, क्योंकि आर्थिक तंगी अपराध नहीं है।
मौलिक अधिकारों की रक्षा का महत्व
कोर्ट ने भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 का हवाला देते हुए कहा कि देश से बाहर जाने का अधिकार हर नागरिक का मूलभूत अधिकार है। जब तक किसी पर आपराधिक आरोप नहीं है, तब तक उसे बिना उचित कारण विदेश जाने से रोकना गलत है। आर्थिक विवाद के कारण किसी व्यक्ति के अधिकार छीनना संविधान के खिलाफ है। यह फैसला न्यायपालिका की संवेदनशीलता और नागरिकों के अधिकारों के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
बैंकों को नई दिशा-निर्देश
अब बैंकों को अपनी लोन रिकवरी नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि केवल उन मामलों में LOC जारी किया जाए जहां ठोस सबूत हों कि व्यक्ति किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल है। सिर्फ लोन चुकाने में देरी या आर्थिक कारणों को आधार बनाकर LOC जारी करना अनुचित होगा। बैंकों को अब अधिक सहानुभूति और संवेदनशीलता से काम लेना होगा तथा वैकल्पिक और कानूनी उपायों से लोन वसूली करनी होगी।
लोनधारकों के लिए क्या मायने रखता है यह फैसला?
इस फैसले से उन लोगों को राहत मिलेगी जो आर्थिक तंगी के कारण लोन ईएमआई नहीं चुका पा रहे हैं लेकिन उनके इरादे साफ हैं। अब उन्हें डर नहीं रहेगा कि बैंक जबरदस्ती LOC जारी कर विदेश यात्रा रोक देगा। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं कि लोन की जिम्मेदारी से बचा जा सकता है। लोनधारकों को बैंक से बातचीत कर समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिए।
आगे का रास्ता और सुझाव
इस फैसले से बैंकिंग सिस्टम में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद है। बैंक को लोन रिकवरी के मामलों में अधिक सहानुभूति दिखानी होगी और लोनधारकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझकर सहयोग करना होगा। आर्थिक कठिनाई होने पर समाधान की दिशा में बातचीत करनी चाहिए। सरकार को भी स्पष्ट गाइडलाइन जारी करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी समस्याओं से बचा जा सके। यह फैसला देश की न्यायपालिका की गंभीरता और नागरिक अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
Disclaimer: यह जानकारी सामान्य जानकारी के उद्देश्य से दी गई है। किसी भी कानूनी सलाह के लिए संबंधित अधिकारी या वकील से संपर्क करें।